वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह (1960) ‘The man put on a new winter coat and walked off like a thought.’

वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह (1960)

वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह।
रबड़ की चप्पल पहनकर मैं पिछड़ गया।
जाड़े में उतरे हुए कपड़े का सुबह छः बजे का वक़्त 
सुबह छः बजे का वक़्त, सुबह छः बजे की तरह।
पेड़ के नीचे आदमी था।
कुहरे में आदमी के धब्बे के अंदर वह आदमी था।
पेड़ का धब्बा बिलकुल पेड़ की तरह था।`
दाहिने रद्दी नस्ल के घोड़े का धब्बा,
रद्दी नस्ल के घोड़े की तरह था।
घोड़ा भूखा था तो
उसके लिए कुहरा हवा में घास की तरह उगा था।
और कई मकान, कई पेड़, कई सड़कें इत्यादि कोई घोड़ा नहीं था।
अकेला एक घोड़ा था। मैं घोड़ा नहीं था।
लेकिन हाँफते हुए, मेरी साँस हुबहू कुहरे की नस्ल की थी।
यदि एक ही जगह पेड़ के नीचे खड़ा हुआ वह मालिक आदमी था 
तो उसके लिए
मैं दौड़ता हुआ, जूते पहिने हुए था जिसमें घोड़े की तरह नाल ठुकी थी।
 

‘The man put on a new winter coat and walked off like a thought.’

The man put on a new winter coat and walked off like a thought.
Wearing flip flops, I lagged behind.
Winter : six am :  a time for worn clothes.
Six am looked a lot like six am.
Under the tree was a man.
In the fog, within the blur of a man, was a man.
The blur of a tree was exactly like a tree.
On the right, the blur of a horse of inferior breed
Was like a horse of inferior breed.
When the horse was hungry
The fog grew for him like grass.
Many houses, trees, roads, etc: none of them a horse.
Only this one horse. I was not a horse.
Panting, my breath replicated a breed of fog.
If the man, standing still under the tree, was the owner
Then I ran for him, wearing shoes nailed on like horseshoes.
 

Original Poem by

Vinod Kumar Shukla

Translated by

Mohini Gupta with The Poetry Translation Workshop Language

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