The Photograph

दोनों ओर जंगल बीच रास्ता रोशनी और दिशा के साथ दोनों ओर जंगल कहकहाता बीच रास्ता शांत दोनों ओर जंगल चीख़ता बीच रास्ता विरक्त दोनों ओर जंगल सपनों में डूबा बीच रास्ता यह विमुक्त किसी नींद से हिलता यह दृश्य आँखों में जैसे पानी की सतह पर कोई प्रतिबिम्ब, चौंकता चेहरा झुका हुआ उस पर […]

A Standard Shirt

दोपहर और शाम के बीच आता है एक अंतराल जब थक चुकी होती हैं आवाजें क्रियाएँ जैसे अब समाप्त हो गई सभी इच्छाएँ, बैठ जाता हूँ किसी भी खाली कुर्सी पर पीली कमीज़ पहने एक लड़का अभी गुजरा मुझे याद आई अपनी कमीज़ उन साधारण से दिनों में यह संभव था हाँ यह जीवन संभव […]

Another Word for It

नीली रंगतें बदलतीं आकाश और लहरों की बादल गुनगुनाता कुछ सपना सा खुली आँखों का कैसा होगा यह दिन कैसा होगा यह वस्त्र क्षणों का ऊन के धागों का गोला समय को बुनता उनींदे पत्थरों को थपकाता होगा एक और शब्द कहने को यह किसी और दिन (पत्थर हो जाएगी नदी, 2007)

After Midnight

मैंने तारों को देखा बहुत दूर जितना मैं उनसे वे दिखे इस पल में टिमटिमाते अतीत के पल अँधेरे की असीमता में, सुबह का पीछा करती रात में यह तीसरा पहर और मैं तय नहीं कर पाता क्या मैं जी रहा हूँ जीवन पहली बार, या इसे भूलकर जीते हुए दोहराए जा रहा हूँ सांस […]

Did You Hear It Too?

चलती रही सारी रात तुम्हारी बेचैनी लिज़बन की गीली सड़कों पर रिमझिम के साथ मूक कराह कि जिसे सुन जाग उठा बहुत सबेरे, कोई चिड़िया बोलती झुटपुटे में जैसे वह भी जाग पड़ी कुछ सुनकर सोई नहीं सारी रात कुछ देखकर बंद आँखों से  चलती रही तुम्हारी बेचैनी मेरे भीतर टूटती आवाज़ समुंदर के सीत्कार […]

The Morning Post

सहारा से उड़ आई धूल रात में महाद्वीपों को लाँघती गिरी इस शहर पर, नहीं कोई बवंडर उड़ा लाया पास के खेतों से शायद पहली बार मैंने ध्यान दिया धूल पर, बिना देखे मैं जी लेता हूँ सारा जीवन सब कुछ सामान्य है यहाँ सब कुछ वहीं जहाँ उसे होना चाहिए पक्षी आकाश में मनुष्य […]

Not What the Words…

मैं बारिश में शब्दों को सुखाता हूँ और एक दिन उनकी सफ़ेदी ही बचती है जगमगाता है बरामदा शून्यता से फिर मैं उन्हें भीतर ले आता हूँ वे गिरे हुए छिटके हुए क़तरे जीवन के उन्हें चुन जोड़ बनाता कोई अनुभव जिसका कोई अर्थ नहीं बनता बिना कोई कारण पतझर उनमें प्रकट होता बाग़ की […]

To the Lost Children

एक चिठ्ठी मैं लिखना चाहता हूँ खोए बच्चों के नाम शहतूत की टहनियों से टँगे छोटे होते जाते हैं उनके कपड़े फैलती हैं टहनियाँ घना होता जाता है शहतूत और सालों में कभी एक बार मैं बूढ़े पेड़ को देखता हूँ अपनी छाया पर झुके हुए, तार-तार होते जाते हैं कपड़े उनकी स्मृतियाँ हवा में […]