साधारण कमीज़
दोपहर और शाम के बीच
आता है एक अंतराल
जब थक चुकी होती हैं
आवाजें क्रियाएँ
जैसे अब
समाप्त हो गई सभी इच्छाएँ,
बैठ जाता हूँ किसी भी
खाली कुर्सी पर
पीली कमीज़ पहने
एक लड़का अभी गुजरा
मुझे याद आई
अपनी कमीज़
उन साधारण से दिनों में
यह संभव था
हाँ यह जीवन संभव था
मैं पहने हूँ अब भी
वैसी ही कमीज़
(जगह,1994)