बावली धुन
रात थी सुबह हो गई
करवटों में भी नहीं मिली कोई जगह
यह ग़लत पतों की यात्रा है मेरे दोस्त
रास्ता भूलना है तो साथ हो लो,
शर्त यही कि भूलना होगा अपना नाम पहले,
वैसे डर किसे नहीं लगता लोगों के भूल जाने का
याद दिलाते रहें जनम जनमों तक
उन्हें अपनी अनुपस्थिति की।
कब होगी पहचान सपने और सच्चाई की
जागकर भी कैसे पता चले जवाब
जब सोया हो हर कोई आसपास
स्मृति की नींद में,
एक बावली धुन साथ है जो उतरती नहीं मन से।
(रेत का पुल, 2012)