खग्रास Eclipse

खग्रास

हमने की कोशिश अँधेरे को मिटाने की
हो गए मंत्रमुग्ध चमकते बल्बों की चौंधियाहट से
कि नहीं दिखता कुछ भी उस चमकते अँधेरे में,
गढ़ा एक नया अँधेरा जिसकी रोशनी में मिटा दिया दिन को
खिड़की पे खींच कर पर्दा
 
तुम्हारी निराशा को अपनी कोशिश में
ठीक करते करते मैं भूल भी गया अपनी ग़लतियों को
अगर तुम्हें मिले वह आशा का चकमक पत्थर इस घुप्प में टटोलते,
बंद कर देना बत्ती कमरे से बाहर जाते हुए
देखना चाहता हूँ अँधेरे को तारों की रोशनी में
बंद आँखों के भीतर ।
 
(रेत का पुल, 2012)
 

Eclipse

Trying to overcome the dark,
we become dazzled by shining bulbs.
Nothing is visible in this glowing darkness,
We have made a new darkness in whose light
we blotted out the day,
drawing a curtain across the window.
 
Trying to cure your despair
I forgot even my miscalculations.
If you do find the flint of hope
as you fumble in this dense darkness,
turn off the light as you leave the room,
so I can see the dark starlight shine
behind my closed eyelids.
 
From Ret ka Pul (Bridge of Sand, 2012)
 

Original Poem by

Mohan Rana

Translated by

Lucy Rosenstein with Bernard O’Donoghue Language

Hindi

Country

India