पानी का रंग The Colour of Water

पानी का रंग

यहाँ तो बारिश होती रही लगातार कई दिनों से
जैसे वह धो रही हो हमारे दाग़ों को जो छूटते ही नहीं
बस बदरंग होते जा रहे हैं कमीज़ पर
जिसे पहनते हुए कई मौसम गुजर चुके
जिनकी स्मृतियाँ भी मिट चुकी हैं दीवारों से
 
कि ना यह गरमी का मौसम
ना पतझर का ना ही यह सर्दियों का कोई दिन
कभी मैं अपने को ही पहचान कर भूल जाता हूँ
 
शायद कोई रंग ही ना बचे किसी सदी में इतनी बारिश के बाद
यह कमीज़ तब पानी के रंग की होगी !
 
(रेत का पुल, 2012)
 

The Colour of Water

Rain falling, day after day,
as if trying to clean off
our permanent stains,
but all it does is discolour
this well-worn shirt,
and wash the memory
of all the passing seasons
from the walls.
 
This is not summer
nor autumn nor winter:
sometimes I recognize myself,
then forget.
 
Maybe after so much rain
all colour will be washed out
and my shirt then be the colour of water.
 
8.9.2008
 
 
 

Original Poem by

Mohan Rana

Translated by

Lucy Rosenstein with Bernard O’Donoghue Language

Hindi

Country

India