पार्क और शाम के समाचार और दुनिया की सबसे ऊँची छत The Evening News and the Roof of the World

पार्क और शाम के समाचार और दुनिया की सबसे ऊँची छत

रोशनी कम हो रही है
कहीं और रोशनी हो रही है
हम शाम के ऊपर कर रहे हैं विचार
टहलते हुए पार्क के पेड़ों के बीच
जो खड़े हैं हाथ बाँधे गुमसुम,
कहीं बारिश हुई
ठंड हो गई यहाँ
हवा आते हुए साथ ले आई
थकी हुई आवाज़ें,
चलो लौट चलें
अँधेरा होने से पहले
रुककर हमने देखा रोशनी को
आकाश पर मिटते
काश हम एक ऊँची मीनार होते
देख पाते यह जाती कहाँ है आखिर
पर पोंछता हुआ इसे यह किसका हाथ है
 
आज शाम के मुख्य समाचार
आवंटित प्रसारण समय में
दुनिया अपना थका हुआ मुँह धोएगी
बिना महाकाव्य के समाप्त हो जाएगी सदी
हम इन दिनों कोलाहल को सन्नाटे के दिन बिताएँगे,
एक समय था जब
दिन का उगना
शाम का डूबना कुछ सोचने की बात थी
वह पाषाण काल था जैसे कुछ देर पहले ही
 
सपने में मैंने देखा हम दुनिया की सबसे ऊँची छत पर थे
फिर भी तारे बहुत दूर थे
और अंतहीन था अँधेरा
 
(जैसे जनम कोई दरवाजा, 1997)
 

The Evening News and the Roof of the World

While light for us is fading
elsewhere it is brightening.
We can think of the dusk
as we walk among the park trees
that stand still with arms folded.
 
Somewhere else there was rain
while here it grew colder.
The airs mingled to bring together
tired voices.
We must get home before dark.
 
We stopped to watch the light
being dusted from the sky,
and I want us to be a tall tower
to see round the horizon
whose hand it was that dimmed the light.
 
While we watch the official evening news
the world will wash its bleary face.
The century will end with no grand epic
though we will spend its final days of peace
to fanfares. There was a time
when the day's spring and the evening's fall
were something to think about:
 
as if the Stone Age was a short while ago.
Then in a dream I saw that, though we were
on the highest roof in the world,
the stars were still far away
and the darkness had no end.
 
13.7.1992
From Jaise Janam Koii Darwaazaa, As if Life Were a Door
 
 
 

Original Poem by

Mohan Rana

Translated by

Lucy Rosenstein with Bernard O’Donoghue Language

Hindi

Country

India