सुबह की डाक The Morning Post

सुबह की डाक

सहारा से उड़ आई धूल रात में
महाद्वीपों को लाँघती गिरी इस शहर पर,
नहीं कोई बवंडर उड़ा लाया पास के खेतों से
शायद पहली बार मैंने ध्यान दिया धूल पर,
बिना देखे मैं जी लेता हूँ सारा जीवन
सब कुछ सामान्य है यहाँ सब कुछ वहीं
जहाँ उसे होना चाहिए
पक्षी आकाश में मनुष्य पैदल
और मछलियाँ स्याह गहराईयों में
 
इस कविता के लिए विशेष बनाए मुखौटे को पहने
आँख खोले में खड़ा हूँ खाली मंच पर लगातार बोलता
काँच के डिब्बे में अपना नाम
उपनाम कुलनाम छ्द्मनाम नाम पता आयु जन्म स्थान शिक्षा कोई रोज़गार
कई दिन हर दिन जब से खोली मैंने आँख,
टूटी हुई कठपुतली सा हिलता
टेढ़ा मेढ़ा उलझता धागों से
अपनी ही मुरझाहट में सिमटता
साँस के लिए चीखता
अजनमा पात्र
 
देहरी पे पड़ी डाक
पुरानी हो चुकी बिना पढ़ी
हर सुबह के साथ,
जहाँ से मैं बढ़ता कहीं और एक और दिन
निकलता उसे देख रुकता छाया की तरह पलभर
सुबह की डाक
 
अपना ही होता है भूगोल दूरियों और निकटता का
तय करता जीवन के नियम सुख दुख
संकट का अंतराल और थोड़ा समय प्रेम के लिए,
मैं सीखता करता गलतियाँ मात्राओं की
छोटी बातों में पूरा होता मेरा दिन
अधूरे कामों को कल के छोड़ता अधूरा कल के लिए,
पुराना होता जाता अपने को नया बनाते
आज का कोट पहने
 
(सुबह की डाक, 2002)
 

The Morning Post

Sand has flown from the Sahara in the night,
crossing lands and seas to fall on this city.
Or has some wind blown it from nearby fields?
For the first time I take notice of dust:
all my life I have lived without seeing
all that is ordinary, all that is
where it should be:
birds in the sky, men on land,
fish in the sea's dark depths.
 
Wearing a mask
made specially for this poem,
I stand with eyes open on an empty stage,
declaiming inside a glass box
my name, nickname, surname, pen-name,
address, age, birthplace, education, job.
Every day since I opened my eyes
I have done this, trembling like a broken puppet
dangling from the strings
that grow twisted as I wither too,
gasping for breath,
my next role unwritten.
The post lies on the mat,
curling at the edges, unread
every morning.
From there I move on
another passing day: hardly a glance
at the morning post my figure shadows.
 
The geography of near and far inside you
decides what life brings: happiness or sorrow;
time of grief, a brief moment for love.
Over and over I practise the minor rules
of punctuation: life still spent
on small distinctions. Yesterday's
unfinished business still unfinished
tomorrow. I grow old, trying to become new
by wearing another coat today.
 
1992 Leicester
From Subah kii Daak, Morning Post
 
 
 

Original Poem by

Mohan Rana

Translated by

Lucy Rosenstein with Bernard O’Donoghue Language

Hindi

Country

India