खोए बच्चों के नाम To the Lost Children

खोए बच्चों के नाम

एक चिठ्ठी मैं लिखना चाहता हूँ खोए बच्चों के नाम
शहतूत की टहनियों से टँगे
छोटे होते जाते हैं उनके कपड़े
फैलती हैं टहनियाँ
घना होता जाता है शहतूत
और सालों में कभी एक बार मैं बूढ़े पेड़ को देखता हूँ
अपनी छाया पर झुके हुए,
तार-तार होते जाते हैं कपड़े
उनकी स्मृतियाँ हवा में मिलती हैं पानी
में घुलती हैं मौसमों में डूबती हैं
महीन होती जाती भूली हुई कविता सी,
 
मैं लिखना चाहता हूँ अपने बारे में पर
किसी और की कहने लगता हूँ
समकालीन पुराने हो जाते हैं,
एक दिन वे खो जाएँगे
खोए हुए बच्चों की तरह एक दिन
एक दिन खो जाएगा - कई दिनों में कहीं,
 
एक चिठ्ठी मैं लिखना चाहता हूँ
खोए हुए बच्चों के नाम
खोए हुए बचपन की ओर से
 
(सुबह की डाक, 2002)
 

To the Lost Children

I want to write to the lost children,
those whose clothes hung from the branches
of the mulberry tree, getting smaller
as the branches grew.
The tree gets thicker and thicker
until years later I see the old tree
bent over its own shadow.
The clothes turn to shreds;
their memories mix in the wind,
dissolve in water, sink under the seasons,
fade like a forgotten poem.
 
I set out to write about myself
but I start talking of someone else.
My contemporaries are growing older.
One day they too will go missing
like the lost children: one day.
One day will go missing out of many.
 
I want to write a letter
to the lost children
posted from their lost childhood.
 
18.8.1995
From Subah kii Daak, Morning Post
 
 
 

Original Poem by

Mohan Rana

Translated by

Lucy Rosenstein with Bernard O’Donoghue Language

Hindi

Country

India